!!बुदधिमान बालक की कहानी !!
मगध की राजधानी पाटलीपुत्र में राज : दरबार का मुख्य कक्ष!सम्राट महापदमानंद एक सुसज्जित सिंहासन पर बैठें हैं! सभी अधिकारी तथा दरबारी अपने: अपने शतनो पर विराजमान है ।दरबार दर्शकों से भरा हुआ है! एक ओर लोहे का बड़ा सा पिंजरा रखा है! पिंजरे में एक सिंह है, जिसके दरवाजे पर ताला लगा है !!!
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सम्राट : महामंत्री !
महामंत्री : आज्ञा महाराज !
सम्राट : क्या सारी व्यवस्था पूरी हो चुुुुकी है !
महामंत्री : जी महाााराज ! यदि आज्ञा हो तो घोषणा
करवा दि जाय !
सम्राट : आज्ञा है !
महामंत्री : प्रतिहारी !
प्रतिहारी : ( अभिवादन कराता है) आज्ञा मंत्रीवर ।नरेश की घोषणा दरबार में पढ़ी जाए । जो आज्ञा महाराज ( ऊँचे शवर में पढ़ना आरंभ कराता है ! सभी सभासदो नगरीको चक्रवर्ती सम्राट महा परमानंद की ओर से यह घोषणा की जाती हैं । कि जो वयकति बिना ताला तोडे, बिना पिंजरा खोले सामने रखे पिंजरे में से सिंह को गायब कर देगा, उसे मुंह मांगा इनाम दिया जायेगा! उसका सम्मान भी किया जायेगा! जो वयकति सभा कक्ष में सननाटा छा जाता है !!
एक सभासद : महाराज के पराक्रम की जय हो! क्या यह संभव हो सकता है कि बििना पििंजरा खोले सिंह को गायब कर दिया जाए!
दुसरा सभासद : महाराज का आदेश समशय सुलझाने के लिए है, तर्क करने के लिए नहीं यह बुधदि की परीक्षा है, बुदधिमान और कुशल वयकती ही ऐसा कर सकेगा यही हमारा विश्वास है!!
महमंत्री : ईशवर की दि हुईं प्रतिभा सभी निवास करती है ,हो सकता है कि कोई प्रतिभावान वयकति इस असंभव कार्य को संभव बना दे !
जन: समुदाय : यदि सििह बाहर आ गया तो निशचय ही हम सब को खा जयेगा! आप ईसे बाहर न आने दे बुधदि परीकक्ष किसी और तरह से भी हो सकती है! यही हमारी प्रार्थना है !!
सम्राट : यह समशय मगध राज्य के बुुुधदिमानो को पड़़ोसी राज्य् की ओर दि गई एक चुुनौती है घबराने की कोई बात नहीं, सभी की सुरक्षा के प्रबंध कर दिए गए हैं, आप शांति से समशया का समाधान ढूंढे !( कुुुछ समय तक सभा कक्षा में सननाटा छा जाता है!!
यह पर अब एक बालक अता है अब उस की चतुरई देखे )
सम्राट : तो कया मैं यह समझ लू कि मगध मैंं प्रतिभा की कमी है? बुदधिमता का अभाव है ?
बालक : महाराज की जय ।मैं यह कार्य कर सकता हूँ महाराज मुुुझे सिंह को गायब करने की अनुमति दीजिए!!
( सभी विशमय से बालक की ओर देखाते है)
महामंत्री : निडर बालक! तुम्हारा नाम क्या हैै ?
बालक : मुझे चंद्र करते है, सीरीमान !
महामंत्री : चंंद्र । यह बच्चों का खेल नहीं है । तुम जाओ और बच्चों के खेल खेलों! उचलो, कूूूदो और दौडो । यह कोई साधारण खेल नहीं बुदधि का खेल है !!
बालक : महामंत्री! क्या ईस प्रतियोगिता में कोई आयु सीमा भी रखी है?
बुदधिमान बालक की चतुराई कहानी बुदधिमन बालक कि कहानी
महामंत्री : ( हंंसकर ) वसय सुुुुई तलवार का कारय नहीं कर सकती ?
बालक : महोदय, तो तलवार भी सुुई का शथान नहीं ले सकती!
सम्राट : यह बालक कौन है? जो ईतना बढ़: चढ़कर बातें कर रहा है!
महामंत्री : महाराज यह एक हठी बालक है !
सम्राट : बालक हठ मत करों नहीं तो तुम्हें सिंह पिंजरे मैं बंद कर दिया जायेगा !
( बालक की माँ अपने पुत्र को एक ओर खींचने का प्रयास करती है परंतु बालक अपना हथ छुडाकर पिंजरे की ओर बढ़ता है )
बालक : महाराज, यदि मैैं समशय का समाधन न ढूंढ सका तो आप जो चाहे दंड दे ! मुझे पििंजरे केे पास जाने की अनुमति दीजिए !
सम्राट : खुुशी से जा सकते हो! ( बालक पिंजरे के पास जाकर सिंह को ध्यान से देखता है और अपनी बुदधि लडाता है! सिंह का रहशय वह जान लेता है दरबार में सब चकिित हो कर देख रहे थे! सब मेंं कुतूहलता थी कि आगे क्या होने वाला हैै!
आप आगे देखे क्या होने वाला है! क्या बालक यह शमशय सुलझा पयेगा आगे पढ़ें !
बालक : महाराज मैं सिंह को बाहर निकाल दूूंगा आप कृपया पिंजरे के चारों ओर आग जलाने का प्ररबं करवा दे और मुझे कुछ समय तक अपना कार्य करने दे !
( सम्राट के आदेशाआदेशानुसार पिंजरे के चारों ओर आग दी जाती है! पिंजरा आग की लपटो में धिर जाता है! देखते ही देखते शेर गायब हो जाता है! आग की लपटे धीरे धीरे शांत हो जाती है ,सभी लोग अपने, अपने शथान से यह विस्मयकारी दृश्य देखे कर दंग रह जाता है ! पिंजरा खाली हो जाता है !
बालक : देख लीजिए महाराज, सिंह पिंजरे से अदृृश्य हो चुुुका है और पिंंजरे का ताला जैसे का वैसा ही है !
सम्राट : वाह ! बहुत खूब! चंंद्र तुमने तो कमाल कर दिया ! तुमने अपनी बुदधि से सिंह के निर्माण की पहचान कर उसे आग की गर्मि सेे पििधला दिया
निवेदन ) बुदधिमान बालक की चतुराई कैसे लगे हमें अपने comments के माध्यम से जरूर बताऐ और अपने दोस्तों के साथ shere करें धन्यवाद!
# RAJKUMAR KACHKAD
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